तो हट सकता है बच्‍चे का चश्‍मा अगर….

 

आज कल बच्‍चे टीवी और मोबाइल की स्क्रीन से चिपके रहते हैं। इस से मां-बाप इस बात से तो सहमत भी है ओर इससे परेशान भी है उनके इस वजह से वो किताबे कम खोलते हैं और घर से बाहर निकल कर खेलने भी कम जाते हैं। आपको बता दें कि इस सबका असर बच्‍चे की सेहत पर बहुत बुरी तरह से पड़ रहा है।

अगर आपका बच्‍चा आंखों से धुंधला दिखाई देने की शिकायत कर रहा है या उसे कम उम्र में ही चश्‍मा लग गया है, तो इसकी एक प्रमुख वजह स्‍क्रीन टाइम है। पीडियाट्रिशियन डॉक्‍टर छाया शाह ने अपने इंस्‍टाग्राम पर एक वीडियो पोस्‍ट कर के बच्‍चों में चश्‍मा लगने के कारणों के बारे में बात की है। जानते हैं कि डॉक्‍टर छाया का बच्‍चों को कम उम्र में ही चश्‍मा लगने पर क्‍या कहना है।

डॉक्‍टर छाया ने कहा कि पहले के समय में जब स्‍कूल जाने वाले बच्‍चों को चश्‍मा लग जाता था, तो लोग या उनकी ही उम्र के बच्‍चे उसे यह कह कर चिढ़ाते थे कि वो कितना पढ़ाकू है। अब यह सब बदल चुका है और अब बच्‍चों को चश्‍मा लगने पर यही कहा जाता है कि ज्‍यादा टीवी देखने की वजह से ऐसा हुआ है जो कि सच भी है।
डॉक्‍टर ने कहा कि जब बच्‍चे ड्राइंग करते हैं, किताबें पढ़ते हैं और स्‍क्रीन देखते हैं, तो उनमें मायोपिया होने या नजदीक का कम दिखने का खतरा अधिक रहता है। अब बच्‍चों को पढ़ाई पर अधिक ध्‍यान देने की सलाह दी जा रही है और शहरीकरण की वजह से बच्‍चे घर से भी बहुत कम बाहर निकलते हैं। इससे उन्‍हें प्रकृति के बीच कम समय बिताने का मौका मिलता है।
डॉक्‍टर का कहना है कि बच्‍चों को घर से बाहर निकलकर प्रकृति के बीच खेलने दें। यहां पर वो दूर की चीजों को देखेंगे। जब बच्‍चा घर में ही रहता है, तो वो सारी चीजों को पास से देखता है और इसकी अधिकता के कारण बच्‍चे की पास की नजर कमजोर हो सकती है। इसलिए आप अपने बच्‍चे को घर से बाहर निकलकर खेलने का मौका दें।
आउटडोर प्‍ले से बच्चों को रात में अच्‍छी नींद आती है। इससे अगले दिन उनकी एकाग्रता बढ़ सकती है और मूड में सुधार होता है। आउटडोर गेम बच्चों को सामाजिक रूप से विकसित होने में मदद करता है, जिससे वे दोस्‍ती करना और कल्पनाशीलता का उपयोग करके एक-दूसरे का मनोरंजन करना सीखते हैं। यह उन्हें समस्याओं को हल करने, अपने साथ के बच्‍चों के साथ संबंध बनाने और प्रकृति के प्रति सम्मान विकसित करने में मदद करता है।

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