मोहम्मद साहब की 1500वीं जयंती पर देशभर में निकले जुलूस, गूँजी नात-ए-शरीफ़
नई दिल्ली। शुक्रवार को पूरे देश में ईद-ए-मिलाद-उन-नबी का पर्व बड़े ही हर्षोल्लास और धार्मिक आस्था के साथ मनाया गया। इस्लामी कैलेंडर के तीसरे महीने रबी-उल-अव्वल की 12वीं तारीख़ को पड़ने वाला यह पर्व इस साल और अधिक ऐतिहासिक रहा, क्योंकि इस बार यह पैग़म्बर-ए-इस्लाम हज़रत मोहम्मद साहब की 1500वीं जयंती के रूप में मनाया गया।
सुबह से मस्जिदों में दुआएँ और कुरान-ख़्वानी
दिल्ली, लखनऊ, भोपाल, कोलकाता, मुंबई, हैदराबाद, अहमदाबाद सहित देश के विभिन्न हिस्सों में सुबह से ही मस्जिदों में नमाज़ अदा की गई और कुरान-ए-पाक की तिलावत की गई। मुस्लिम समाज के लोग अपने घरों और मोहल्लों को रोशनियों और हरे झंडों से सजाकर पैग़म्बर मोहम्मद साहब को याद करते रहे। बच्चों ने जुलूस में नात-ए-शरीफ़ पढ़ी, जबकि कई जगह कव्वालियों और तकरीरों का आयोजन किया गया।
गरीबों में बाँटा गया खाना, भाईचारे का पैग़ाम
ईद-ए-मिलाद के अवसर पर मुस्लिम समाज के लोगों ने ज़रूरतमंदों की मदद करने और भोजन वितरित करने की परंपरा निभाई। कई मस्जिदों और दरगाहों के बाहर गरीबों को खाना खिलाया गया और कपड़े बाँटे गए। धर्मगुरुओं ने इस अवसर पर कहा कि मोहम्मद साहब की शिक्षाएँ अमन, भाईचारा और इंसानियत की सेवा का पैग़ाम देती हैं।
मुंबई में अवकाश 8 सितंबर को
महाराष्ट्र सरकार ने मुस्लिम संगठनों के आग्रह पर इस बार मिलाद-उन-नबी का अवकाश 8 सितंबर, सोमवार को घोषित किया है। सरकार का कहना है कि इससे मुस्लिम समाज को पर्व मनाने में अधिक सुविधा मिलेगी और व्यवस्थाएँ सुचारु रूप से चल सकेंगी
अहमदाबाद में विशेष ट्रैफिक इंतज़ाम
अहमदाबाद में ईद-ए-मिलाद और गणेश विसर्जन एक ही दिन पड़ने की वजह से प्रशासन ने विशेष इंतज़ाम किए। दोपहर 2 बजे से कई मार्गों पर ट्रैफिक डायवर्जन लागू किया गया और कुछ जगह बस सेवाएँ भी अस्थायी रूप से रोकी गईं। पुलिस और स्वयंसेवी संगठनों ने दोनों समुदायों के आयोजनों को शांतिपूर्ण ढंग से सम्पन्न कराने में अहम भूमिका निभाई।
हैदराबाद में जुलूस 14 सितंबर तक स्थगित
हैदराबाद में प्रशासन ने ऐलान किया कि मुख्य मिलाद-उन-नबी का जुलूस अब 14 सितंबर को निकाला जाएगा। इसका कारण यह बताया गया कि एक ही दिन गणेश उत्सव और मुस्लिम जुलूस होने से सुरक्षा और शांति व्यवस्था प्रभावित हो सकती थी। हालाँकि, 5 सितंबर को मस्जिदों में नमाज़, कुरान-ख़्वानी और छोटे-छोटे धार्मिक आयोजन पूरे जोश से हुए ।
क्यों मनाया जाता है
इतिहासकारों के अनुसार हज़रत मोहम्मद साहब का जन्म 570 ईस्वी में मक्का (सऊदी अरब) में हुआ था। उन्होंने इंसानियत, बराबरी, अमन और मोहब्बत का संदेश दिया। मुस्लिम समाज मानता है कि पैग़म्बर की शिक्षाएँ आज भी दुनिया को इंसाफ और भाईचारे की राह दिखाती हैं। यही वजह है कि उनकी जयंती पर हर साल दुनियाभर के मुसलमान उन्हें याद करते हैं और उनके बताए रास्ते पर चलने का संकल्प लेते हैं।
धर्मगुरुओं का संदेश
मौलाना और उलेमा ने लोगों से अपील की कि वे मोहम्मद साहब की बताई हुई शिक्षाओं को अपनाएँ। उन्होंने कहा कि आज के समय में इंसानियत, मोहब्बत और आपसी भाईचारे की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है।

समाचार की दुनिया में हमें 15 साल से ज्यादा प्रिंट मीडिया काम करने का अनुभव है, जो आगे भी निरंतर जारी है। हमारा प्रयास रहेगा कि आपको देवभूमि की संस्कृति, परंपराओं और पर्यटन के साथ साथ सरकार की नीतियों, देश-दुनिया व क्राईम घटनाओं के बारे में सही जानकारी दें और आपको खबरों के माध्यम से अपडेट रखें। आप जन उत्तराखंड पोर्टल में कमेंट कर अपने सुझाव एवं न्यूज की जानकारी भी दें सकते है।