इस्लाम धर्म में ईद उल फ़ित्र और ईद उल अजहा की तरह ही ईद-ए-मिलाद-उन-नबी का त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। रबीउल अव्वल महीने की 12 तारीख को मिलादुन्नबी मनाया जाता है। इस दिन को इस्लाम में काफी अहम माना जाता है, क्योंकि इसी दिन इस्लाम धर्म के संस्थापक पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का जन्म हुआ था। इस दिन का महत्व ये है कि पैगंबर मोहम्मद का जन्म मक्का में 570 ई. में हुआ था।
मिलाद का अर्थ । मीलाद उन-नबी इस्लाम धर्म के मानने वालों के कई वर्गों में एक प्रमुख त्यौहार है। इस शब्द का मूल मौलिद (Mawlid) है जिसका अर्थ अरबी में “जन्म” है। अरबी भाषा में ‘मौलिद-उन-नबी’ (مَولِد النَّبِي) का मतलब है हज़रत मुहम्मद का जन्म दिन है। मीलाद उन नबी संसार का सबसे बड़ा जशन माना जाता है। कहा जाता है कि 1588 में उस्मानिया साम्राज्य में यह त्यौहार का प्रचलन जन मानस में सर्वाधिल प्रचलित हुआ।
मवलिद का मूल अरबी भाषा का पद “वलद” है, जिस का अर्थ “जन्म देना”, “गर्भ धारण” या “वारिस” (वंश) के हैं। समकालीन उपयोग में, मवलीद या मौलीद या मौलूद, प्रेशित मुहम्मद के जन्मतिथी या जन्म दिन को कहा जाता है।
मौलीद का अर्थ ह.मुहम्मद के जन्म दिन का भी है, और इस शुभ अवसर पर संकीर्तन पठन या गायन को भी “मौलीद” कहा जाता है, जिस में सीरत और नात पढी जाती हैं। इस पर्व को इन नामों से भी पुकारा और पहचाना जाता है।
मुस्लिम समुदाय इस दिन मस्जिदों में नमाज़ अदा करके कुरान पढ़कर इस दिन को मनाते हैँ, और मस्जिदों से जुलूस ए मोहम्मदी निकलते हैं। इसके अलावा लोग अपने परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर मिलाद-ए-नबी की बधाई और शुभकामनाएं देते हैं।
ईद-ए-मिलाद-उन-नबी का महत्व
ईद-ए-मिलाद-उन-नबी इस्लाम में एक खास महत्व रखता है क्योंकि यह फॉलोवर्स को पैगंबर मुहम्मद के बताए हुए रास्तों को और उनकी शिक्षाओं की याद दिलाता है। यह त्यौहार उनकी जिंदगी और अल्लाह के बताए हुए रास्ते को जश्न मनाने के लिए समर्पित है। इसे इसलिए ईद-ए-मिलाद-उन-नबी भी कहा जाता है।
पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के मानने वाले इस दिन को बड़ी ही धूम धाम से मनाते हैं। घरों में इस दिन कुरान शरीफ की तिलावत की जाती है।

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